ए मोहब्बत अलविदा
मन्नू देर शाम से ही मायूस बैठा था। कोई उस पर ध्यान नहीं दे रहा था लेकिन मैं तो ठहरा उसका लंगोटिया यार उसकी रग रग से वाकिफ था। मुझे मालूम था कि इसके अंदर कौन सा तूफान मचा हुआ है,सैलाब है आंसुओं का, एक आंसू भी जो टपका तो लड़ी बन जाए और थमने का नाम ही ना ले ।
बात मोहब्बत की है उसकी मोहब्बत उसे छोड़ कर जा रही थी दूर शहर से बहुत दूर। मन्नू यह सब कैसे बर्दाश्त कर सकता था, लेकिन कर भी क्या सकता था सिवाय इसके कि अपना दर्द खुद ही बांट लें।
शाम 6:00 बजे ट्रेन थी। मन्नू बार-बार घड़ी देखता रहा।
वह टाइम से ही स्टेशन पहुंच गया, अपनी मोहब्बत को अलविदा कहने के लिए।
वह बार-बार आंख से आंसू पोंछता, मानो आंसूओं से कह रहा हो कि क्यों मेरे यार के दीदार में आड़े आ रहे हो ,आखरी वक्त में तो जी भर के देख लेने दो फिर कहां मुलाकातें होंगी।
मानो आंखों से कह रहा हो, इस वक्त को संभालो,इसकी तस्वीर बिठा लो कि फिर भुलाय ना भूलें, मानों धड़कनों से कह रहा हो कि थम जाओ इस वक्त की हर आहट को कैद करने दो।
उसका पूरा वजूद ट्रेन की सीटी पर लगा था।
सीटी बजी ट्रेन में हरकत हुई और मन्नू का दिल बैठ गया, जैसे घर से कोई मय्यत निकल रही हो, मानो जिंदगी भर कमाई दौलत लुट गई हो, किसी राजा की सल्तनत उखड़ गई हो।
ट्रेन के बढ़ने के साथ-साथ उसके आंसू भी उबाल मार रहे थे ।
डुब डुबाई हुई आंखों से बराबर ट्रेन को देखे जा रहा था।
अचानक ट्रेन दीखना बंद हो गई,वह उतावला हो गया जैसे कुछ कीमती चीज खो गई हो।
इस बोझ को मन्नू का कजोर दिल बर्दाश्त ना कर सके और वह फर्श पर गिर पड़ा ।
आखिर सब लोगों के साथ मोहब्बत को भी अलविदा कह गए।
डुब डुबाई हुई आंखों से बराबर ट्रेन को देखे जा रहा था।
अचानक ट्रेन दीखना बंद हो गई,वह उतावला हो गया जैसे कुछ कीमती चीज खो गई हो।
इस बोझ को मन्नू का कजोर दिल बर्दाश्त ना कर सके और वह फर्श पर गिर पड़ा ।
आखिर सब लोगों के साथ मोहब्बत को भी अलविदा कह गए।